पाकिस्तान का आंतरिक संकट लगातार गंभीर होता जा रहा है। सिंध प्रांत में शहबाज शरीफ सरकार के खिलाफ जनाक्रोश इस कदर भड़क उठा है कि कई स्थानों पर हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, अब तक कम से कम तीन लोगों की मौत हो चुकी है और कई अन्य घायल बताए जा रहे हैं।
सिंध में भड़की हिंसा और पुलिसिया कार्रवाई
प्रदर्शनकारियों ने सिंध में सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी की और कई स्थानों पर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया। नौशेरा फिरोज़पुर से गोलीबारी की खबरें सामने आ रही हैं, जहाँ पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव हुआ। प्रदर्शन बीते कई दिनों से जारी हैं और हालात काबू से बाहर होते दिख रहे हैं।
पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई में प्रदर्शनकारियों पर सीधे गोली चलाने के आरोप लगे हैं, जिससे जनता में और आक्रोश बढ़ गया है। जनता का कहना है कि सरकार उनकी बात सुनने के बजाय दमन का रास्ता अपना रही है।
मिलिट्री राज और नागरिक सरकार की असफलता
पाकिस्तान में सेना का वर्चस्व इतने स्तर पर स्थापित हो चुका है कि लोकतांत्रिक संस्थाएं मात्र औपचारिकता बनकर रह गई हैं।
निर्वाचित सरकारें सेना की छाया में चलती हैं, और नीतिगत फैसलों से लेकर विदेश नीति तक पर सेना का नियंत्रण हावी रहता है।
इस असंतुलन ने देश की संवैधानिक व्यवस्था को खोखला कर दिया है।
जनता महसूस कर रही है कि उनके वोट का कोई वास्तविक मूल्य नहीं है — सत्ता का असली केंद्र जीएचक्यू (जनरल हेडक्वार्टर रावलपिंडी) है, न कि संसद भवन इस्लामाबाद।
नागरिक सरकार की बार-बार की विफलताएं, भ्रष्टाचार, और जवाबदेही की कमी ने इस संकट को और भी गंभीर बना दिया है।
अब पाकिस्तान की जनता यह सवाल कर रही है:
“जब न लोकतंत्र काम कर रहा है, न सेना देश की रक्षा कर पा रही है — तो फिर किस पर भरोसा किया जाए?”
चोलीस्तान नहर परियोजना बना संघर्ष का कारण
एक और बड़ा कारण है — चोलीस्तान नहर प्रोजेक्ट। इस परियोजना को लेकर बुधवार को सिंध प्रांत में फिर से हिंसक प्रदर्शन हुए, जिसमें दो लोगों की जान चली गई। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह परियोजना सिंध की जल आपूर्ति को बर्बाद कर देगी और यह प्रांत के किसानों के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है।
बलूचिस्तान और गिलगित-बाल्टिस्तान में भी गूंजा असंतोष का स्वर
सिंध तक सीमित नहीं रहा जनाक्रोश — अब बलूचिस्तान, गिलगित और बाल्टिस्तान जैसे संवेदनशील इलाकों में भी सरकार विरोधी आंदोलन तेज़ हो रहे हैं।
इन क्षेत्रों में पहले से ही पाकिस्तान सरकार के प्रति गहरा असंतोष था, जो अब धीरे-धीरे खुले विद्रोह में बदलता जा रहा है।
स्थानीय समुदायों का आरोप है कि उन्हें वर्षों से विकास, अधिकार और संसाधनों से वंचित रखा गया है।
अब जब सरकार की असफलताएँ और अधिक उजागर हो रही हैं, तो इन उपेक्षित इलाकों की जनता खुलकर आवाज़ उठा रही है — और यह पाकिस्तान की एकता के लिए गंभीर चेतावनी बन चुका है।
भारत से युद्ध में करारी हार — ‘ऑपरेशन सिंधूर’ की गूंज
यह असंतोष केवल स्थानीय कारणों से नहीं है। भारत द्वारा किए गए “ऑपरेशन सिंधूर” के बाद पाकिस्तान की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल हुई है, जिससे जनता में रोष और असंतोष की भावना और गहरी हो गई है।
भारत के साथ हालिया सैन्य टकराव में हुई हार ने सरकार और सेना की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जनता यह मान रही है कि सरकार न सिर्फ अपनी सीमाओं की रक्षा करने में विफल रही है, बल्कि आंतरिक विकास के मुद्दों पर भी पूरी तरह विफल रही है।
भारत द्वारा अंजाम दिए गए ‘ऑपरेशन सिंधूर’ ने न केवल पाकिस्तान की सैन्य तैयारियों की पोल खोल दी, बल्कि उसके रणनीतिक ढांचे की कमजोरी भी उजागर कर दी।
इस सैन्य कार्रवाई के बाद पाकिस्तान को सीमा पर निर्णायक हार का सामना करना पड़ा, जिससे सरकार और सेना दोनों की साख पर गहरा आघात पहुंचा।
इस हार ने पाकिस्तान की जनता के बीच गहरा अविश्वास पैदा किया है।
जो सेना खुद को देश का रक्षक कहती थी, वही अब आलोचना और घृणा का केंद्र बनती जा रही है।
लोगों को यह महसूस होने लगा है कि सेना और सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए अब आंतरिक विद्रोह को दमन के ज़रिए दबा रही हैं।
संसाधनों में पक्षपात और राजनीतिक भ्रष्टाचार ने बढ़ाया जन-असंतोष
पाकिस्तान की संघीय नीतियों में लंबे समय से पंजाब प्रांत को प्राथमिकता दी जाती रही है, जबकि सिंध, बलूचिस्तान, और गिलगित-बाल्टिस्तान जैसे सीमांत क्षेत्रों को योजनाओं और संसाधनों में जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया गया।
इन इलाकों के लोगों का आरोप है कि सरकार द्वारा आवंटित फंड का बड़ा हिस्सा या तो पाकिस्तानी सेना की साजो-सामान में खर्च होता है या फिर राजनीतिक भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है।
सामाजिक विकास, बुनियादी ढांचा, शिक्षा और जल प्रबंधन जैसी मूलभूत सुविधाओं में इन क्षेत्रों की अनदेखी ने जनता के बीच गहरा असंतोष पैदा किया है।
अब जब देशभर में उथल-पुथल मची हुई है, तो यह वंचित प्रांतों का असंतोष एक संगठित विद्रोह में बदलता जा रहा है।
महंगाई और बेरोजगारी का विस्फोट
पाकिस्तान में आज हालात ऐसे हैं कि आम जनता दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा पा रही। आटे और रोजमर्रा की चीज़ों के दाम आसमान छू रहे हैं।
बेरोजगारी चरम पर है और लोग नौकरी की तलाश में दूसरे देशों में भीख तक माँगने को मजबूर हैं।
खाड़ी देशों, खासकर सऊदी अरब और यूएई, ने इस पर पाकिस्तान को कई बार फटकार लगाई है।
यह आर्थिक असमानता और लाचारी, जनता को सरकार और देश से अलग-थलग करती जा रही है।
निष्कर्ष: बिखरते पाकिस्तान की अंतिम चेतावनी
इन सात कारणों ने मिलकर पाकिस्तान को आर्थिक रूप से दिवालिया, सामाजिक रूप से अस्थिर, और राजनीतिक रूप से दिशाहीन बना दिया है।
अब स्थिति केवल संकट की नहीं, बल्कि विघटन की ओर बढ़ने की चेतावनी है।
अगर पाकिस्तान की सरकार अब भी नहीं चेती, तो आने वाले समय में यह देश व्यापक गृहयुद्ध, विभाजन और अंतरराष्ट्रीय अलगाव का शिकार हो सकता है।